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भारत में कुषाण पहचान की निरन्तरता - कसाना गुर्जरों के गाँवो का सर्वेक्षण

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भारत में कुषाण पहचान की निरंतरता- कसाना गुर्जरों के गांवों का सर्वेक्षण डॉ सुशील भाटी अक्सर यह कहा जाता हैं कि कनिष्क महान से सम्बंधित ऐतिहासिक कुषाण वंश अपनी पहचान भूल कर भारतीय आबादी में विलीन हो गया| किन्तु यह सत्य नहीं हैं| अलेक्जेंडर ने ‘आर्केलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, खंड 2’, 1864  में कुषाणों की पहचान आधुनिक गुर्जरों से की है| यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक हैं कि ऐतिहासिक कुषाणों से इतिहासकारों का मतलब केवल कुषाण वंश से नहीं बल्कि तमाम उन भाई-बंद कुल, वंश, नख और कबीलों के परिसंघ से हैं जिनका नेतृत्व कुषाण कर रहे थे| कनिंघम के अनुसार आधुनिक कसाना गुर्जर राजसी कुषाणों के प्रतिनिधि हैं तथा आज भी सिंध सागर दोआब और यमुना के किनारे पाये जाते हैं| कुषाण सम्राट कनिष्क ने रबाटक अभिलेख में अपनी भाषा का नाम आर्य बताया हैं| सम्राट कनिष्क ने अपने अभिलेखों और सिक्को पर अपनी आर्य भाषा (बाख्त्री) में अपने वंश का नाम कोशानो लिखवाया हैं| गूजरों के कसाना गोत्र को उनके अपने गूजरी लहजे में आज भी कोसानो ही बोला जाता हैं| अतः गुर्जरों का कसाना गोत्र कोशानो का ही हिंदी रूपांतरण हैं| कोशानो शब्द को