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आसींद से मनसुख गुर्जर कांग्रेस पार्टी से टिकट के हर मापदंड पर फिट बैठते हैं

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आसीन्द से #मनसुख_गुर्जर काँग्रेस पार्टी से टिकिट के हर मापदण्ड पर फिट बैठते है । आसीन्द का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल सवाईभोज मन्दिर गुर्जर समाज का अंतराष्ट्रीय तीर्थ स्थल है, यहाँ से गुर्जर उम्मीदवार को टिकिट देने से आसपास की दर्जनभर सीटो पर इसका प्रभाव पड़ता है साथ ही पूरे प्रदेश में इसका सन्देश जाता है । आसीन्द क्षेत्र में 70 हजार गुर्जर वोटर है । बीजेपी इस बात को अच्छी तरह समझ रही है, इसलिए लगातार गुर्जर समाज का उम्मीदवार उतारकर चुनाव जीत रही है । काँग्रेस पार्टी जिस व्यक्ति को टिकिट दे रही थी, वो लगातार दो चुनाव हार चुका है, पिछली बार निर्दलीय चुनाव लड़कर काँग्रेस पार्टी के प्रत्यासी को चुनाव हरवा चुका है, उसकी पार्टी के प्रति जरा भी वफादारी नही है । मनसुख जी गुर्जर युवा है और आसीन्द क्षेत्र के विकास के लिए उनके पास विजन है । चार साल पहले पँचायत समिति सदस्य  से अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले मनसुख जी गुर्जर का व्यक्तित्व सेवा भावी है, गरीब असहाय लोगो की प्रत्यक्ष रूप से मदद करते है । जनसभाओ में उनका विशेष ध्यान शिक्षा, रोजगार, नशे का त्याग और कुरीतियो को मिटाने पर होता ह

गुर्जर घार का इतिहास भाग -1

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भाग - 1 गुर्जरघार का इतिहास !! जब जब हम #गूजरघार, #गुर्जर गढ़ की बात करते हैं तब तब हमको चम्बल की खूंखार भयानक वादियों और महान क्रुर डकैतों की याद आती है जिसमे मोहर सिंह, गब्बर सिंह, निर्भय सिंह ,जगन सिंह ,पान सिंह , फूलन देवी आदि 50 डकैत थे । परंतु हम भूल जाते हैं गुर्जर घार में दबी ऐतिहासिक नगरियों की बात करते हैं तो कुतवार प्राचीन कुंटलपुर , गोपाचल मतलब ग्वालियर , भिंडी ऋषि के नाम पर दे रखी भिंड , आगरा , से लेकर ब्रज की सीमा तक एक किनारे से सटीक गुर्जर गढ़ की सीमा प्राचीन ब्रज मथुरा का केंद्र बिंदु था , जिसमे मौर्य , तथा अन्य छोटी छोटी वंशो ने राज किया था जिसमे महान काल के नाम से प्रमुख मौर्य और कुषाण काल को प्रमुखता मिलती है जिसके अतिरिक्त कुषाण काल मे फैले गुर्जरी भाषा के कुछ अंश तथा अन्य प्रमुख बाते मिलती है जिसमे दतिया स्थित उन्नाव का सूर्य मंदिर तथा अशोक के गुर्जरा अभिलख प्रमुख हैं ! गुर्जरा अभिलख में सम्राट अशोक ने अपने पूरे नाम का विवरण किया है जिसका स्थान गुर्जरों के छाबड़ी गोत्र के प्राचीन गाँव के निकट मिलता है जिसमे सम्भवतः अशोक महान ने अपना पड़ाव रखा था ।

पृथ्वीराज चौहान दिल्ली का अंतिम गुर्जर शासक

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• पृथ्वीराज चौहान - दिल्ली का अंतिम गुर्जर शासक : कई इतिहासकारों के अनुसार agnikula गुटों मूल रूप Gurjaras थे और चौहान गुर्जर के प्रमुख कबीले था। चौहान गुर्जर की Chechi कबीले से अपने मूल निकाले जाते हैं। बंबई gadgetier के अनुसार Chechi gurjars ruled Ajmer for about 700years, Chechis / Yuechis वे एक शक्तिशाली मंगोल जनजाति "क्ज़ियांग्नू" से अपनी मातृभूमि से विस्थापित किया गया है इससे पहले मध्य एशिया में तारिम बेसिन (झिंजियांग प्रांत) के रूप में जाना जाता क्षेत्र में रहते थे। Chu- हान विवाद (200 ईसा पूर्व), "चू" राजवंश और चीन के "हान" राजवंश के बीच वर्चस्व की लड़ाई जिसमे yuechis / Gujars भी इस विवाद का हिस्सा थे। गुर्जर जब भारत मे अरब बलों से लड़ते थे । जब वे "ChauHan" शीर्षक अपने बहादुर सैनिकों को सम्मानित करने के लिए प्रयोग किया जाता था (which ultimately became chauhan) अंततः Prithviraj चौहान 1166 ईस्वी में Ajaymeru (अजमेर) में पैदा हुआ थे । उनके पिता सोमेश्वर चौहान और मां Karpuri देवी, एक कलचुरी (Chedi) राजकुमारी, (Tripuri के Achalaraja की