संदेश

मार्च, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गुर्जर भाईयों से निवेदन हे की अपनी प्राचीन धरोहर को बचालो

चित्र
गुर्जर समाज के सभी भाइयो को राम राम सा 🙏🏻 आज में आपके सामने बगड़ावत श्री सवाई भोज महाराज एवं उनके 23 भाइयो द्वारा निर्मित अति प्राचीन गुर्जर समाज की अनमोल  धरोहर लगभग 1150 वर्ष पुराने भगवान शंकर के मंदिर के बारे में अवगत करा रहा हूँ ।  जो कि अभी अपने गुर्जर  समाज व पुरातन विभाग की अनदेखी के कारण जीर्ण- शीर्ण की अवस्था मे है ।जो कि जोधपुर जिले के बिलाड़ा कस्बे से मात्र 6 किलोमीटर दूर हर्ष गाँव के पास स्थित है । बड़े बुजुर्गों के अनुसार बगड़ावत यहाँ पर अपनी गायें चराया करते थे । बगड़ावत भगवान शिव के परम भक्त थे , शिव भक्ति के कारण किवदंतियों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि बगड़ावतों ने इस शिव मंदिर को एक ही रात में बनाया । कुछ कारणवश गुम्बद का ऊपरी हिस्सा पूर्ण न होने की वजह से या फिर हो सकता है क्षति ग्रस्त हुआ हो समय की मार से । जो आज भी अपूर्ण अवस्था मे  है । समाज के गणमान्य व्यक्तियों से अपील करता हूं कि समाज की इस अनमोल  धरोहर के संरक्षण हेतु आगे आये ।सरकार और संबधित विभाग को भी इसके सरंक्षण हेतु एक ज्ञापन देकर मुहिम चलाई जाए । पुरातन विभाग की तरफ

मेरे इतिहास लेखन का एक लक्ष्य उनके सिर लगवाना है जिनके सर तोड़ दिए गए हें।

चित्र
“मेरे इतिहास लेखन का एक लक्ष्य उनके सिर लगवाना हैं जिनके सिर तोड़ दिए गए हैं|” डॉ सुशील भाटी 2016 IGD के अवसर पर जावली में मैंने कहा था कि “मेरे इतिहास लेखन का एक लक्ष्य उनके सिर लगवाना हैं जिनके सिर तोड़ दिए गए हैं|” साथियो इतिहास अधिकतर सभ्रांत और अभिजात्य मानसिकता से लिखा जाता हैं| इस कारण से वर्तमान में गैर-अभिजात वर्ग में गिने वाले जाट, अहीर, गुर्जर, लोध, कुर्मी, जाटव, भील, मुंडा संथाल, मेव, मीणा लुहार, बढई आदि भारत की लगभग पांच हज़ार जातियों और कबीलों को भारतीय इतिहास में उचित स्थान नहीं मिल पाया हैं| नस्लीय तथा जातिगत पूर्वाग्रह से ग्रस्त अभिजात्य मानसिकता की वज़ह से, बहुधा इनकी ऐतिहासिक उपलब्धियों की उपेक्षा की गई हैं, या फिर इनके इतिहास को तोड मरोड़ कर अभिजात्य जातियों का इतिहास बना दिया गया हैं| गुर्जर शब्द स्थान वाचक हैं या कबीले का नाम? इस प्रश्न को खड़ा करके, गुर्जरों को उनके इतिहास से वंचित करने के प्रयासों से सभी परिचित हैं| वर्तमान इतिहास लेखन की इस परिपाटी से गैर-अभिजात्य कबीलों और जातियों का इतिहास और उनकी पहचान मिटती जा रही हैं| इस सब के बावजूद, समाज में अ

गुर्जर कुषाण कालीन 'गुशुर' शब्द का परवर्तित रूप हें

चित्र
गुर्जर कुषाण कालीन ‘गुशुर’ शब्द का परवर्तित रूप हैं| डॉ सुशील भाटी गुशुर>गुजुर>गुज्जर>गुर्ज्जर>गुर्जर कुछ इतिहासकार के अनुसार गुर्जर शब्द की उत्पत्ति ‘गुशुर’ शब्द से हुई हैं| गुसुर ईरानी शब्द हैं| एच. डब्लू. बेली के अनुसार गुशुर’ शब्द का अर्थ ऊँचे परिवार में उत्पन्न व्यक्ति यानि कुलपुत्र हैं|  ‘गुशुर’ शब्द का आशय राजपरिवार अथवा राजसी परिवार के सदस्य से हैं| बी. एन. मुख़र्जी के अनुसार कुषाण साम्राज्य के राजसी वर्ग के एक हिस्से को ‘गुशुर’ कहते थे| उनके अनुसार ‘गुशुर’ सभवतः सेना के अधिकारि होते थे| कुषाण सम्राट कुजुल कड़फिसिस के समकालीन उसके अधीन शासक सेनवर्मन का स्वात से एक अभिलेख प्राप्त हुआ हैं, जिसमे‘गुशुर’शब्द सेना के अधिकारीयों के लिया प्रयुक्त हुआ हैं| सबसे पहले पी. सी. बागची  ने गुर्जरों की ‘गुशुर’ उत्पात्ति के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था| प्रसिद्ध इतिहासकार आर. एस. शर्मा ने गुर्जरों की ‘गुशुर’ उत्पात्ति मत का  समर्थन किया हैं| उत्तरी अफगानिस्तान स्थित एक स्तूप से प्राप्त अभिलेख में विहार स्वामी की उपाधि के रूप में ‘गुशुर’ का उल्लेख किया गया हैं| जैसा कि ऊ

बदकिस्मती हम गुर्जरोँ की हम एक किरोड़ी न बना सके।

चित्र
#बदकिस्मती_गुर्जरों_कि_हम_एक_डॉ_किरोड़ी_न_बना_सके। मीणा जाति का सबसे बड़ा हित "ST कोटा" सुरक्षित करने के बाद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा जी राष्ट्रीय राजनीति में नेतृत्व करने के लिए वापस अपने घर को लौट चुके हैं। आप मे से कुछ लोग उन्हें कौम का गद्दार कह सकते हैं, पर वास्तव में वे मीणा समाज के सच्चे हितेषी हैं, जिन्होंने जमें हुए राजनीतिक पद और पार्टी का परित्याग करके समाज को अपने हक़ के लिए खड़ा कर दिया और आज जब सबकुछ शांत है, उनकी कौम का हक़ सुरक्षित है तो न सिर्फ वे वापस अपने नीड़ को लौट चले, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में मीणा समाज के सितारा बनकर रहेंगे। इसे ही असली राजनीति कहते हैं कि जातिधर्म भी बखूबी निभा लिया और अब उसके साथ स्वविचारधारा के अनुसार भी जिएंगे। राजस्थान के गुर्जर राजनेताओं की इतनी बड़ी तो सोच ही नही है कि राजस्थान के विधायक से बाहर सोचने की हैसियत बना सकें औए हाँ, जिनकी है, उनकी नज़र में कौम की इतनी ज्यादा इज्जत नही है।    नीचे के अखबार के अनुसार अब गुर्जर समाज के 8 विधायकों में से किसी ऐसे को ढूंढा जावेगा जो सारे गुर्जर समाज को बावळा कर सकें, गुंजल उस लायक है पर येनकेन

शहीद परिवार की जितनी हो सके मदद जरूर करें।

चित्र
जय-जय बगड़ावत    आरक्षण आंदोलन 2007 मे शहीद रूप सिंह कसाना  निवासी दुब्बी ,सिकंदरा दौसा ,के परिवार की कहानी :-   रुपसिंह जी की शहादत के बाद उसके परिवार पर संकटो का पहाड़ टूट पड़ा जवान बेटे की मौत का गम लिए कुछ समय बाद  शहीद रुपसिंह जी के पिता का निधन हो गया ,आंदोलन मे  शहीद रूपसिंह सिंह जी  के निधन से पहले उनकी पत्नी भी 2 बेटियों को छोड़ इस दुनिया से  जा चुकी थी  ...शहीद का बचा परिवार संभलने ही लगा था   की परिवार की जिम्मेदारियां उठाते  शहीद रूपसिंह जी  के  छोटे भाई व उनकी धर्मपत्नी का भी  एक सड़क दुर्घटना मे स्वर्गवास हो गया    .. जिनके एक बेटा था ....2 साल पहले ब्लड कैंसर से वो भी शांत हो गया....आज परिवार मे कमाने वाला  यदि कोई है तो शहीद रुपसिंह जी की माँ रामेश्वरी देवी जो शहीद कोटे से मिली अनुकंपा नियुक्ति पर  दिल को पत्थर किये दौसा के भांडारेज मे विद्यालय मे हेल्पर के रूप मे सेवा दे रही है...उस वृद्धा की अंतिम इच्छा है  की उसके जीते जी जैसा भी हो दोनों लड़कियो का विवाह हो जाये...    25 मार्च को शहीद रूप सिंह जी की दोनों पुत्रियों  'कृष्णा' एवं 'मनीषा'  का विवाह है

22 मार्च अंतरराष्ट्रीय गुर्जर दिवस

चित्र
22 March अंतर्राष्ट्रीय गुर्जर दिवस सम्राट कनिष्क महान हमारे सभी पूर्वजो में सिरमौर हैं। लगभग दो हजार साल बीतने पर भी गुर्जर समाज में वो एक देवपुत्र की तरह पूजे जाते हैं।। गुर्जरो के खेतो में देवता बने होते हैं, वे देवता कनिष्क महान की पूजन परम्परा को ही संजोये हुए हैं। हर तीज त्योहार पर गुर्जरियां उन देवताओ पर घी का दीया जलाती हैं व पकवान चढाती हैं। कनिष्क महान को देवपुत्र कहा जाता था।। सभी कसाणा सम्राटो को देवपुत्र ही कहा गया है। सम्राट कनिष्क महान के पंचतत्व में विलीन होने के सैकडो सालो बाद भी कल्हण ,हवेनसांग व अन्य बहुत से लेखक उनका यशोगान करते हैं। सम्राट विमतक्तु कुषाण के पुत्र कनिष्क अपने राज्यरोहण से पहले शको के खिलाफ युद्ध लडते हैं व शको को कुषाणो का अधिपत्य स्वीकाराने पर विवश कर देते हैं। इस युद्ध में कनिष्क महान शूरवीर सेनापति शालिवाहन के साथ युद्ध भूमि में जाते हैं व शकसत्ता को उखाड फेंकते हैं। इस विजय व राज्यरोहण के उपलक्ष्य में कनिष्क महान एक नया संवत चलाते हैं जिसे शक संवत यानी शालिवाहन शक संवत  कहा जाता है। शालिवाहन आधुनिक भाटी वंश के पूर्वज हैं जिनके पिता रिस

गुर्जर प्रतीक चिन्ह सम्राट कनिष्क का शाही निशान

चित्र
IGD - 2018 गुर्जर प्रतीक चिन्ह - सम्राट कनिष्क का शाही निशान [गुर्जर लोगो (Gurjar Logo) .... ब्रह्मास्त्र (पाशुपतास्त्र) का प्रतीक है ] को लेकर बिरादरी के प्रख्यात इतिहासकार डॉ. सुशील भाटी जी ( Sushil Bhati ) के विचार : महान गुर्जर सम्राट कनिष्क के सिक्को पर पाए जाने वाले शाही निशान को कनिष्क का तमगा भी कहते है| कनिष्क के तमगे में ऊपर की तरफ चार नुकीले काटे के आकार की रेखाए हैं तथा नीचे एक खुला हुआ गोला हैं इसलिए इसे चार शूल वाला " चतुर्शूल तमगा ” भी कहते हैं | कनिष्क का ‘चतुर्शूल तमगा” सम्राट और उसके वंश / ‘कबीले’ का प्रतीक हैं | इसे राजकार्य में शाही मोहर के रूप में भी प्रयोग किया जाता था| कनिष्क के पिता विम कडफिस ने सबसे पहले ‘चतुर्शूल तमगा’ अपने सिक्को पर शाही निशान के रूप में प्रयोग किया था| विम कडफिस शिव का उपासक था तथा उसने माहेश्वर की उपाधि धारण की थी | माहेश्वर का अर्थ - शिव भक्त भी है | अब बिटटू भैया जी (Bittoo Kasana Jawli)की तरफ से .... इसमें तो कोई दो राय है ही नही की डॉ सुशील भाटी जी ने गहन रिसर्च करके उपरोक्त विषय पर अपने विचार रखे है | उनके साथ मिलकर

अंतरराष्ट्रीय गुर्जर दिवस 22 मार्च

चित्र
22 March #International_Gurjar_Day अंतराष्ट्रीय गुर्जर दिवस दोस्तों गुर्जरों के पूर्वज सम्राट कनिष्क,कुषाण/कसाना ने 78 ई. में अपने राज्य रोहण पर एक नया संवत चलाया था जिसे शक संवत,कहते हैं| यह हर साल 22 मार्च को शुरू होता हैं| 22 मार्च यानि सम्राट कनिष्क के,राज्य रोहण का दिन गुर्जरों के लिए अंतराष्ट्रीय महत्व का हैं क्योकि कनिष्क,का साम्राज्य आज के उत्तर भारत, पाकिस्तान, अफघानिस्तान, उज्बेकिस्तान,और ताजिकिस्तान आदि देशो तक में फैला था| कनिष्क के साम्राज्य की एकराजधानी मथुरा भारत में दूसरी पेशावर आज के पाकिस्तान में थी| इस दिन को हम अंतराष्ट्रीय गुर्जर दिवस (International Gurjar Day) के रूप में मना सकते हैं| इस दिनहम विचार गोष्ठी अथवा कोई समारोह कर सकते हैं| यह एक ऐसा अवसर हो सकता हैं जिसमे पुरे विश्व का गुर्जर सहभाग कर भाईचारे को बढ़ा सकता हैं .

25 दिन बाद मलारना संशय गुर्जरों का रेल रोको आंदोलन होगा शुरू फसल की लावणी के कारण मोहलत

चित्र
25 दिन बाद मलारना स्टेशन से गुर्जरों का रेल रोको आंदोलन हाेगा शुरू, फसल की लावणी के कारण मोहलत - राज्य की सरकारी नौकरियों में पांच प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर सोमवार को कस्बे के देवनारायण भगवान मंदिर परिसर में गुर्जर समाज की महापंचायत हुई। इसमें आरक्षण संघर्ष समिति के मुखिया कर्नल किरोडी सिंह बैसला ने पच्चीस दिनों बाद मलारना स्टेशन से रेल रोककर उग्र आंदोलन करने की घोषणा की। साथ ही कहा कि यदि सरकार ने इस अवधि के दौरान कोई भी कार्रवाई नहीं हुई तो सरकार को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। इस दौरान आरक्षण आंदोलन की तिथि को लेकर युवा वर्ग में नाराजगी भी देखी गई। युवाओं का कहना था कि सात मार्च से पुलिस परीक्षा से पहले आंदोलन हो। बाद में फसल की लावणी को देखते हुए पच्चीस दिनों तक आंदोलन को टाला गया। देरी के लिए मौजूदा सरकार को जिम्मेदार ठहराया कस्बे में स्थित गुर्जर धर्मशाला में दोपहर बाहर बजे गुर्जर महापंचायत का आयोजन शुरू किया गया। इससे पहले समाज के युवा चौथमाता मार्ग में जगह जगह आंदोलन को लेकर तैयारियां करते नजर आए। महापंचायत में कई जिलों से आए वक्ताओं ने आरक्षण में देरी के ल

जम्बूदीप का सम्राट कनिष्क कोशानो

चित्र
जम्बूदीप का सम्राट कनिष्क कोशानो डॉ सुशील भाटी कनिष्क कोशानो (कुषाण) वंश का महानतम सम्राट था| कनिष्क महान एक बहुत विशाल साम्राज्य का स्वामी था| उसका साम्राज्य मध्य एशिया स्थित काला सागर से लेकर पूर्व में उडीसा तक तथा उत्तर में चीनी तुर्केस्तान से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक फैला हुआ था| उसके साम्राज्य में वर्तमान उत्तर भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान का  हिस्सा, तजाकिस्तान का हिस्सा और चीन के यारकंद, काशगर और खोतान के इलाके थे| कनिष्क भारतीय इतिहास का एक मात्र सम्राट हैं जिसका राज्य दक्षिणी एशिया के बाहर मध्य एशिया और चीन के हिस्सों को समाये था| वह इस साम्राज्य पर चार राजधानियो से शासन करता था| पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) उसकी मुख्य राजधानी थी| मथुरा, तक्षशिला और कपिशा (बेग्राम) उसकी अन्य राजधानिया थी| कनिष्क कोशानो का साम्राज्य (78-101 ई.) समकालीन विश्व के चार महानतम एवं विशालतम साम्राज्यों में से एक था| यूरोप का रोमन साम्राज्य, ईरान का सासानी साम्राज्य तथा चीन का साम्राज्य अन्य तीन साम्राज्य थे| कोशानो साम्राज्य का उद्गम स्थल बैक्ट्रिया (वाहलिक, बल्ख) माना जाता हैं

चलो मिलकर मनाते हे अंराष्ट्रीय गुर्जर दिवस

चित्र
कोई भी नींव जब रखी जाती है तो ,साल दर साल ईंट ऐसे रखी जायें कि वो इमारत एक ऐसी स्मारक बने जो आने वाली पीढ़ी के लिये नजीर बनें।22 मार्च अंतर्राष्ट्रीय गुर्जर दिवस ऐसा ही गुर्जरोत्सव है जिसे हर साल बडे छोटे स्तर पर सेलिब्रेट किया जाना चाहिये।इस साल फिर से यह मुबारक मौका आया है और हम सबको फिर से इसे सफल बनाने की बीड़े पर जुट जाना चाहिये।चाहे दस युवा ही खड़े हों पर यह मनाया जाना चाहिये।इतिहास,संस्कृति,विरासत,बलिदान,लोत परंपरा को खुशनुमा होकर मनाने का यह सबसे सटीक और ऐतिहासिक मूल्य का दिन है।हम युवा हैं और यह हमारी जिम्मेदारी की हम अपनी विरासत व इतिहास को किस तरह से लोगो के सामने रखते हैं।हम इतिहास या विरासत से रिक्त होकर नहीं जी सकते। गुर्जर सम्राट कनिष्क भारतीय उपमहाद्वीप का ही नहीं बल्कि पूरे एशिया का इतिहास हैं,उनके राज्यरोहण दिवस पर होने वाला यह शक संवत्सर हमारे गौरवशाली अतीत का वो सुनहरा दिन है जो हमें आने वाले वक्त में ना केवल गर्व व अभिमान से भर देगा बल्कि हमारा मुस्तकबिल भी इसके आगोश में रोशन होगा। चलो मिलकर मनाते हैं अंतर्राष्ट्रीय गुर्जर दिवस😊 #IGD2018 #Kanishka #King_Kanis

भारतीय राष्ट्रिय संवत-शक संवत

चित्र
भारतीय राष्ट्रीय संवत- शक संवत डा. सुशील भाटी शक संवत भारत का राष्ट्रीय संवत हैं| इस संवत को कुषाण/कसाना सम्राट कनिष्क महान ने अपने राज्य रोहण के उपलक्ष्य में 78 इस्वी में चलाया था| इस संवत कि पहली तिथि चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा होती हैं जोकि भारत के विश्व विख्यात सम्राट कनिष्क महान के राज्य रोहण की वर्ष गाठ हैं| शक संवत में कुछ ऐसी विशेषताए हैं जो भारत में प्रचलित किसी भी अन्य संवत में नहीं हैं जिनके कारण भारत सरकार ने इसे “राष्ट्रीय संवत” का दर्ज़ा प्रदान किया हैं| भारत भाषाई और सांस्कृतिक बहुलता वाला विशाल देश हैं, जिस कारण आज़ादी के समय यहाँ अलग-अलग प्रान्तों में विभिन्न संवत चल रहे थे| भारत सरकार के सामने यह समस्या थी कि किस संवत को भारत का अधिकारिक संवत का दर्जा दिया जाए| वस्तुत भारत सरकार ने सन 1954 में संवत सुधार समिति (Calendar Reform Committee) का गठन किया जिसने देश प्रचलित 55 संवतो की पहचान की| कई बैठकों में हुई बहुत विस्तृत चर्चा के बाद संवत सुधार समिति ने स्वदेशी संवतो में से शक संवत को अधिकारिक राष्ट्रीय संवत का दर्जा प्रदान करने कि अनुशंषा की, क्योकि प्राच

22 मार्च अंतराष्ट्रीय गुर्जर दिवस

चित्र
22 मार्च- अंतराष्ट्रीय गुर्जर दिवस Lets Celebrate 22 March- International Gurjar Day डा. सुशील भाटी 1 गुर्जर इस मायने में एक अंतराष्ट्रीय समुदाय हैं कि यह अज्ञात काल से भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान और कुछ मध्य एशियाई देशो में निवास कर रहा हैं| क्योकि गुर्जर एक अंतराष्ट्रीय समुदाय हैं तो इसका एक अंतराष्ट्रीय दिवस भी होना चाहिये| 2 ऐतिहासिक तोर पर कनिष्क द्वारा स्थापित कुषाण साम्राज्य गुर्जर कौम का प्रतिनिधित्व करता हैं| यह साम्राज्य भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि उन सभी देशो में फैला हुआ था जहाँ आज गुर्जर रहते हैं| कुषाण साम्राज्य की एक राजधानी मथुरा, भारत में तथा दूसरी पेशावर, पाकिस्तान में थी| तक्षशिला और बेग्राम, अफगानिस्तान में इसकी अन्य राजधानी थी| 3 मशहूर पुरात्वेत्ता एलेग्जेंडर कनिंघम इतिहास प्रसिद्ध कुषाणों की पहचान आधुनिक गुर्जरों से की हैं| उनके अनुसार गुर्जरों का कसाना गोत्र कुषाणों का वर्तमान प्रतिनिधि हैं| 4 कनिष्क के साम्राज्य का एक अंतराष्ट्रीय महत्व हैं, दुनिया भर के इतिहासकार इसमें अकादमिक रूचि रखते हैं| प्राचीन काल  का अंतराष्ट्रीय व्यापर मार्ग जिसे