सब्र का इम्तिहान ना ले सरकार-कर्नल बैंसला

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सब्र का इम्तिहान ना ले सरकार- कर्नल बैंसला

गुर्जरों में गुस्से का फ्यूज वॉयर जल रहा है और आक्रोश
का बम्ब किसी भी क्षण फूट सकता है।

फौज से रिटायर होने के बाद पुराने मॉडल की मिलेट्री डिस्पोजल जीप के आगे-पीछे 'हम होंगे कामयाब' का छोटा सा स्लोगन लिखकर अपने सोए हुए उपेक्षित समाज को जगाने निकले कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने तेरह साल पहले मुहिम छेड़ते वक्त सोचा भी नहीं होगा कि वे इतनी जल्दी कामयाबी के शिखर को छूकर न सिर्फ नेशनल फिगर बन जाएंगे बल्कि वर्षों से उपेक्षा की गहरी नींद में डूबा उनका समाज भी उठकर खड़ा हो जाएगा। तेरह साल की तपस्या के बाद आज कर्नल बैंसला किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। देश भर के गुर्जरों को अपने झण्डे तले लाने वाले बैंसला ने आज गुर्जरों को उस मुकाम पर ला खड़ा किया है, जहां उनकी एक आवाज पर लाखों गुर्जर अपनी जान की बाजी लगाने को तैयार बैठे हैं। शिक्षा से सदैव जी चुराने वाले गुर्जर समाज में कर्नल बैंसला ने जागृति का ऐसा गुरू मंत्र फूंका है कि आज न सिर्फ युवकों और युवतियों में बल्कि बच्चों में पढ़ाई का जुनून पैदा हो चुका है। अविवाहित किशोरियों के साथ-साथ विवाहित युवतियों में भी नौकरी पाने की अनोखी ललक दिखाई दे रही है। विवाहित युवतियां अपने अबोध बच्चों को ससुराल में छोड़कर नजदीक के कस्बों में किराए से कमरा लेकर कोचिंग ज्वाइन कर रही हैं। इसी शिक्षा की खातिर हजारों परिवार गांव की सरजमीं को छोड़ शहरों में आ बसे हैं और बच्चों को इंग्लिश स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। आरक्षण आंदोलन के जरिए अपने सोए हुए समाज में शिक्षा की जुनूनी अलख जगाने वाले राजस्थान गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के संयोजक कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला से तथ्य भारती ने हर मुद्दे पर खुली बातचीत की। पेश है-साक्षात्कार का सारांश।

तेरह साल पहले जब आप अपनी जीप पर 'हम होंगे कामयाब' का स्लोगन लिखकर अपने समाज को जगाने निकले थे तो क्या आपको ऐसी जागृति की उम्मीद थी?
गुर्जर समाज सदियों से उपेक्षित रहा। चाहे सरकार किसी भी दल की रही, गुर्जरों के उत्थान के लिए किसी ने भी नहीं सोचा। यदि कारण रहा कि उपेक्षा के दंश झेलते-झेलते गुर्जर समाज शिक्षा से कोसों दूर चला गया। पशुपालन और कृषि में खपते रहीं गुर्जर जैसी तमाम घुमंतू जातियों को मुख्यधारा में लाने के प्रयास कभी हुए ही नहीं। जहां हर घर-आंगन में पिछडेपन का बसेरा हो, वहां इतनी जल्दी कामयाबी की उम्मीद तो नहीं थी लेकिन मुझे खुशी है कि मेरा सोया हुआ समाज जाग गया।

गुर्जरों सहित पांच पिछड़ी जातियों को पांच फीसदी पृथक आरक्षण देने के लिए सरकार कई बार विधानसभा में विधेयक पारित कर चुकी है। ऐसे में सरकार का क्या दोष है?
सरकार का नहीं तो किसका दोष है? सरकार बखूबी जानती है कि संवैधानिक प्रावधान और आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए जा चुके निर्णयों के परिप्रेक्ष्य में पचास फीसदी के ऊपर आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। फिर भी सरकार ने हर बार गुर्जरों सहित पांच अति पिछड़ी जातियों को पचास प्रतिशत से बाहर आरक्षण का विधेयक पारित किया। ऐसे में सरकार नहीं, तो कौन दोषी है? सरकार से वार्ता के दौरान आंदोलनकारी नेताओं ने हमेशा पचास प्रतिशत के भीतर पृथक आरक्षण की मांग रखी लेकिन सरकार ने हर बार धोखा दिया। विधेयक पारित करके न तो संविधान की नवीं अनुसूची में डलवाया गया और न ही स्वच्छ मन से अदालत में पैरवी की गई। यही वजह की हर बार आरक्षण का मामला कोर्ट में जाकर अटक गया। सच बात तो यह है कि सरकार की नीति और नियत में ही खोट है और वह झांसा देकर गुर्जरों को ठग रही है।

29 नवम्बर को जयपुर में सरकार के साथ हुई आपकी वार्ता बेनतीजा रही। वजह क्या थी?
वजह थी-सरकार की हठधर्मिता। हमने पूर्व की भांति इस बार भी 50 फीसदी के अन्दर पृथक से आरक्षण की बात रखी। सरकार को अपना फार्मूला सुझाया। कहा कि विशेष पिछड़ा वर्ग में एक प्रतिशत आरक्षण को पूर्वानुसार जारी रखते हुए ओबीसी में वर्गीकरण करते हुए हम पांच कौमों को चार फीसदी पृथक से आरक्षण प्रदान करें लेकिन सरकार इस पर राजी नहीं हुई। ऐसा करने पर सरकार को जाटों के नाराज होने का खतरा दिखाई देता है। सच बात तो यह है कि सरकार सिफ़र् लाठी की भाषा समझती है।

बातचीत के रास्ते बंद हो चुके तो अब क्या करेंगे?
चाहे किसी भी हद जाना पड़े लेकिन इस बार हक लेकर ही घर लौटेंगे। आरक्षण की इस ग्यारह साल लम्बी लड़ाई में जिन वीर गुर्जरों ने अपनी कुर्बानी दी है, उसे बेकार नहीं जाने देंगे। रास्ते सरकार की हठधर्मिता के कारण बंद हुए हैं और इस बंद ताले की चाबी सरकार के ही पास है। अब गुर्जरों के सब्र की सारी सीमाएं टूट चुकी हैं और गुर्जरों सहित पांचों जातियां अब चुप बैठने वाली नहीं हैं। समूचे राजस्थान के गुर्जरों में इस वक्त आक्रोश है और वे हर दिन गर्म हो रहे जनाक्रोशके इस ज्वालामुखी को फटने से नहीं रोक सकते। इसी महीने में दस-पन्द्रह दिन के भीतर सरकार को दिन में तारे नजर आ जाएंगे। आजादी के बाद अब तक दमन, उत्पीड़न, शोषण और सरकारी अनदेखी का दंश झलते रहे गुर्जरों में गुस्से का फ्यूज वॉयर जल रहा है और आक्रोश का बम्ब किसी भी क्षण फूट सकता है।
तो क्या अब आंदोलन का रास्ता ही बचा है? बातचीत से समाधान का कोई अन्य विकल्प नहीं है?
हम तो हमेशा ही सरकार के बुलावे पर बातचीत के लिए जाते रहे हैं। हमने वार्ता के जरिए समाधान से कभी भी इंकार नहीं किया। लेकिन अब तो खुद सरकार ने ही बातचीत का रास्ता बंद किया है। हमने सरकार को पचास फीसदी के भीतर पांच प्रतिशत आरक्षण का फार्मूला सुझाया लेकिन सरकार ने उसे मानने से दो टूक इंकार कर दिया। वह भी सिफ़र् इसलिए कि सरकार को ओबीसी में शामिल कुछ जातियों की नाराजगी का खतरा है। सरकार की वोटों वाली राजनीति से गुर्जरों सहित पांचों पिछड़ी जातियों में भारी गुस्सा है। इस बार पहले से भी प्रखर आंदोलन तो होगा ही, यदि हक नहीं मिला तो आने वाले चुनाव में सरकार से हिसाब चुकता भी कर लेंगे।
पिछले आरक्षण आंदोलनों के दौरान सरकारी सम्पत्ति की क्षति के साथ-साथ हाईवे और रेल्वे ट्रैक जाम से आमजन को भारी असुविधा हुई। क्या इस बार आंदोलन का तरीका बदलेंगे?
हम नहीं चाहते कि आंदोलन हो। प्रदेश या देश के अन्य राज्यों में अशांति या जनजीवन अस्तव्यस्त हो। हम हर हाल में शांतिपूर्ण तरीक़े से अपना वाजिब हक हासिल करना चाहते हैं। लेकिन अब सब्र की इंतिहा हो गई। चार साल से हम सरकार की बात मान रहे हैं। सरकार को पूरा सहयोग दिया। सरकार ने इसी कार्यकाल में संवैधानिक तरीके से पांच प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया। आप ही देख लीजिए चार साल में पत्ता तक नहीं हिला। बदले में सरकार ने क्या दिया? सिर्फ झूठे आश्वासन और वादाखिलाफी। कोई सीमा तो होगी। आखिर अन्याय को हम कब तक बर्दाश्त करेंगे?
सरकार ने आपकी मांग को पूरा करने कई आयोग और समितियां बनाईं और व्यापक सर्वे कराया। फिर अड़चन कहां है?
जबाव-सही कहा आपने। सरकार ने गुर्जरों सहित पांच अति पिछड़ी जातियों की जमीनी हालत जानने के लिए काका कालेकर कमीशन, लोकोर कमेटी, जस्टिस जसराज चौपड़ा कमेटी और जस्टिस गर्ग कमेटी बनाईं। इन सबने व्यापक अध्ययन और छानबीन के बाद पाया कि पांचों जातियों की सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक स्थिति अत्यंत दयनीय है और इन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने और उत्थान के लिए आरक्षण की नितांत आवश्यकता है। इसके अलावा हर बुद्धिजीवी भी मानता है कि हमारी मांग न्यायोचित है। बावजूद इसके हमें हमारा वाजिब हक नहीं मिल पा रहा है। जहां तक अड़चन की बात है तो यह स्थिति खुद सरकार ने पैदा कर रखी है। खुद के द्वारा गठित आयोग और कमेटियों की सिफारिशों को अमलीजामा पहनाने में सरकार का पूरी तरह विफल रहना साबित करता है कि सरकारी की नीति और नियत में कहीं न कहीं खोट है। इस तरह का छलावा करके सरकार गुर्जरों को आंदोलनात्मक कदम उठाने के लिए उकसा रही है।
परन्तु आप चाहें तो आक्रोशित गुर्जरों को फिर से सड़क पर उतरने से रोक सकते हैं।
जबाव-आप ही बताइए कि कैसे? गांव और ढाणियों में सुलग रहे आक्रोश को मैं कैसे रोक सकता हूं? गुर्जर अब जाग चुके हैं। आज यदि मैं चैन की नींद सोना भी चाहूं, तब भी मुझे घर से उठा ले जाएंगे। अब तो गैंद पूरी तरह सरकार के पाले में है। यदि सरकार चाहती है कि प्रदेश में शांति बनी रहे तो उसे हर हाल में गुर्जरों सहित पांचों जातियों को पचास प्रतिशत के भीतर तत्काल आरक्षण दे देना चाहिए। वैसे भी गुर्जर किसी के हक पर डाका नहीं डाल रहे, सिर्फ अपना हक मांग रहे हैं। वह हक, जिसके वे हकदार हैं। सरकार के पास संभलने के लिए अब भी समय है।
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हेमराज गुर्जर जैतगढ़ आसीन्द 📲 9828040794
(प्रदेश मीडिया प्रभारी-अखिल भारतीय युवा गुर्जर महासभा राजस्थान)
(जिला मीडिया प्रभारी-पथिक सेना संगठन भीलवाड़ा)
(युवा गुर्जर समाज सेवक आसींद भीलवाड़ा राजस्थान)

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