गुर्जर प्रतीक चिन्ह सम्राट कनिष्क का शाही निशान



गुर्जर प्रतीक चिन्ह -सम्राट कनिष्क का शाही निशान



Gurjar / Gujjar  Logo- The Royal Insignia of Kanishka

गुर्जर प्रतीक चिन्ह -सम्राट कनिष्क का शाही निशान

सम्राट कनिष्क के सिक्के पर उत्कीर्ण पाया जाने वाला ‘राजसी चिन्ह’ को ‘कनिष्क का तमगा’ भी कहते हैं| कनिष्क के तमगे में ऊपर की तरफ चार नुकीले काटे के आकार की रेखाए हैं तथा नीचे एक खुला हुआ गोला हैं| कनिष्क का राजसी निशान “शिव के त्रिशूल” और उनकी की सवारी “नंदी बैल के पैर के निशान” का समन्वित रूप हैं|

गुर्जर प्रतीक चिन्ह gurjar logo

सबसे पहले इस राज चिन्ह को कनिष्क के पिता सम्राट विम कड्फिस ने अपने सिक्को पर उत्कीर्ण कराया था| विम कड्फिस शिव का परम भक्त था तथा उसने माहेश्वर की उपाधि धारण की थी| यह राजसी चिन्ह कुषाण राजवंश और राजा दोनों का प्रतीक था तथा राजकार्य में मोहर के रूप में प्रयोग किया जाता था|

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मशहूर पुरात्वेत्ता एलेग्जेंडर कनिंघम इतिहास प्रसिद्ध कुषाणों की पहचान आधुनिक गुर्जरों से की हैं| उनके अनुसार गुर्जरों का कसाना गोत्र कुषाणों का वर्तमान प्रतिनिधि हैं|



सम्राट कनिष्क का ‘राजसी चिन्ह’ गुर्जर कौम की एकता, उसके गौरवशाली इतिहास और विरासत का प्रतीक हैं| ऐतिहासिक तौर पर कनिष्क द्वारा स्थापित कुषाण साम्राज्य गुर्जर समुदाय का प्रतिनिधित्व करता हैं, क्योकि यह मध्य एशिया और भारतीय उप महादीप के उन सभी क्षेत्रो में फैला हुआ था, ज़हाँ आज गुर्जर निवास करते हैं|

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गुर्जर प्रतीक चिन्ह ( Gurjar Logo)
कुषाण साम्राज्य के अतरिक्त गुर्जरों से सम्बंधित कोई अन्य साम्राज्य नहीं हैं, जोकि पूरे भारतीय उप महादीप में फैले गुर्जर समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए अधिक उपयुक्त हो| यहाँ तक की मिहिर भोज द्वारा स्थापित प्रतिहार साम्राज्य केवल उत्तर भारत तक सीमित था, तथा पश्चिमिओत्तर में करनाल इसकी बाहरी सीमा थी|

कनिष्क के साम्राज्य का एक अंतराष्ट्रीय महत्व हैं, दुनिया भर के इतिहासकार इसमें अकादमिक रूचि रखते हैं|

– डॉ सुशील भाटी ( लेखक इतिहासकार है )

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