राजस्थान की वीर बहादुर छवि










छवि राजावत, राजस्थान की 'वीरांगना'
📰.........✒   HEMRAJ GURJAR JAITGARH ASIND

जब नाम ही छवि है तो अपनी 'छवि' का कमाल तो उसे दिखाना ही था। बात सिर्फ नाम की नहीं है उसे बखूबी चरितार्थ करने की है। छवि राजावत, यह नाम है राजस्थान की उस 'वीरांगना' का जिसने देश के पढ़े-लिखे युवाओं के सामने एक अनूठा और आज के दौर में आवश्यक उदाहरण रखा है। राजस्थान के जयपुर से 60 किमी दूर ग्राम सोडा में जन्मीं छवि ने कभी यह नहीं सोचा होगा कि एक दिन वह विश्व पटल पर आम भारतीय नारी की प्रखर छवि स्थापित करने में कामयाब हो जाएगी। आखिर ऐसा क्या किया छवि ने?

बदल दी भारत की 'छवि'
संयुक्त राष्ट्रके 11वें इन्फो पॉवर्टी वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस में छवि ने अपनी कुशल प्रतिभागिता दर्ज की। आखिर इसमें कोई नया कमाल नहीं था। लेकिन कमाल यह था कि 24 और 25 मार्च 2011 को हुई संयुक्त राष्ट्र की ओर से हुई इस बहस में छवि ने ग्राम सरपंच के रूप में प्रतिनिधित्व किया। छवि का जब अध्यक्ष ने सरपंच के रूप में परिचय करवाया तो कॉन्फ्रेंस में बैठे दिग्गजों के चेहरों के रंग बदल गए। आमतौर पर एक महिला ग्राम सरपंच की छवि हम भारतीय के मानस में भी कुछ अलग तरह उभरती है।

सिर पर पल्लू, चेहरे पर संकोच, शब्दों की हकलाहट, कम्यूनिकेशन के लिए अन्य पर निर्भर, आँखों में अचानक बड़े लोगों के बीच आ जाने का अनजाना डर यही तो इमेज बना पाते हैं हम अपनी ग्राम सरपंच की। फिर संयुक्त राष्ट्र की उस बहस में शामिल लोगों के लिए भी यह सोच उतनी ही स्वाभाविक थी। वे छवि राजावत को देखकर इसलिए हतप्रभ रह गए कि उनके सामने खड़ी वह सरपंच एक आकर्षक मॉडल या बॉलीवुड की एक्ट्रेस लग रही थी।

अगर यह नहीं तो उसे कॉर्पोरेट लुक में कोई भी आईटी प्रोफेशनल तो मान ही सकता था। छवि को मॉर्डन अंदाज में देखकर ग्राम सरपंच मानना हर किस‍ी के लिए अचरज भरा था। जींस और स्टाइलिश टॉप में किसी भारतीय ग्राम सरपंच से मुखातिब होना विदेशियों के लिए एक अनूठा अनुभव था।

छवि : एक प्रेरणा
आम भारतीय युवाओं के लिए छवि एक प्रेरणा के रूप में उभरी है। सामान्यत: गाँव से बाहर निकलते ही ग्रामीण युवा शहर और गाँव के बीच एक द्वंद्व का शिकार हो जाता है। उच्च शिक्षा तो वह ले लेता है लेकिन उसकी संस्कृति और सोच अधकचरी रह जाती है। वह ना तो पूरी तरह गाँव का रह जाता है ना ही शहर उसे पूर्णत: अपनाता है। ऐसे में एक अजीब सी कुंठा का भी शिकार हो जाता है।

अपने गाँव से दूर भागने में ही उसे समाधान नजर आता है। छवि ने यह संदेश दिया है कि अपनी जड़ों के प्रति आग्रह रखने में कोई बुराई या शर्म नहीं बल्कि गौरव और सम्मान की बात है। अपनी मिट्टी की सौंधी खुशबू को आत्मसात करते हुए उसे अपने द्वारा अर्जित ज्ञान से अभिसिंचित करना जन्मभूमि को एक नई ऊर्जा और साँस देने के समान है। देश से तेजी से पलायन कर रहे विदेशों में बसते जा रहे युवाओं के लिए भी छवि एक सार्थक और सशक्त उदाहरण है।

यह है गाँव की सच्ची बेटी
एक ताजातरीन झोंके की तरह आकर छवि ने जैसे हम सबकी सोच ही बदल दी। वह कहती है, मैंने एमबीए करने के बाद भारती-टेली वेंचर्स में सीनियर मैनेजमेंट की नौकरी की लेकिन मुझे लगा कि मेरी जरूरत मेरे गाँव को है सो नौकरी त्याग कर गाँव की सेवा करने चली आई। मैं कोई महान कार्य नहीं कर रही, मुझे कोई प्रचार भी नहीं चाहिए। मैं तो अपने गाँव की मिट्टी का कर्ज चुका रही हूँ।

जिस गाँव में पली-बढ़ी-खेली उसे जब सक्षम होकर कुछ देने की बारी आई तो मुँह कैसे मोड़ लूँ? ऐसा तो सब करते हैं मैंने अपने ही गाँव में रहकर उसे सवाँरने का निर्णय लिया है। और एक दिन मैं अपना गाँव बदल दूँगी।' हौसलों की यह चमक बताती है कि छवि अपने गाँव की सच्ची बिटिया है।

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संयुक्त राष्ट्र में छलके छवि के इरादे
संयुक्त राष्ट्र में आयोजित इन्फो पॉवर्टी वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस में गरीबी से लड़ने और विकास को बढ़ावा देने के लिए मंथन किया जा रहा था। छवि ने आत्मविश्वास से लबरेज हो अपनी बात रखी। उसने कहा, 'सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (एमडीजी) को हासिल करने के लिए विभिन्न रणनीतियों पर विचार करना जरूरी है। यदि भारत इसी धीमी गति से प्रगति करता रहा जैसी पिछले 65 साल में की है, तो यह उचित नहीं कहा जा सकता। भला, हम कैसे सफल होंगे जबकि अभी भी पानी, बिजली, शौचालय, स्कूल और नौकरी लोगों के लिए सपने की तरह है।

मैं जानती हूँ कि हमें यह थोड़े भिन्न तरीके से करना है और तेजी से करना है। पिछले साल ही मैंने गाँव वालों के साथ मिलकर कई बदलाव किए। जबकि हमारे पास कोई बाहरी सहायता नहीं थी। हमने एनजीओ, सरकारी या निजी मदद भी नहीं ली। एमडीजी के लक्ष्य के लिए हमारे पास कॉर्पोरेट की दुनिया से मदद आती है।
मैं संयुक्त राष्ट्र भागीदारी कार्यालय को धन्यवाद देना चाहूँगी कि जिन्होंने अपने वरिष्ठ सलाहकार को हमारे पास सोडा गाँव भेजकर मदद दिलाई। इससे गाँव में पहला बैंक खुला। तीन साल में मैं अपना गाँव बदलकर रख दूँगी। मुझे पैसा नहीं चाहिए। मैं लोगों को जोड़कर संगठनों से हमारी परियोजनाएँ गोद लेने की उम्मीद रखती हूँ। स्थानीय संपर्क में अभाव होने से कई परियोजनाएँ विफल होती है और इसीलिए यहाँ आई हूँ, ताकि खाई कम की जा सके। मैं चाहती हूँ कि इस सम्मेलन में हमें तेजी से बदलाव करने में मदद मिले।
नारी, जो नहीं हारी
छवि ने ना सिर्फ युवाओं के लिए बल्कि विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं और युवतियों में एक नई चेतना शक्ति का संचार किया है। राजस्थान के टोंक जिले का छोटा सा गाँव सोडा भला इस तरह अंतराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति की सोच भी नहीं सकता था। वह भी एक स्त्री के दम पर। राजस्थान अगर अपनी रंगबिरंगी संस्कृति के लिए मशहूर है तो यह भी इसी प्रदेश का सच है जहाँ लंबा घूँघट रखना, डायन समझ कर मार दिया जाना, पनघट से पानी लाना, बेटियों की अबोध अवस्था में शादी कर देना, दहेज और बेटी को बोझ मानने जैसी तमाम कुरीतियाँ आसानी से नजर आ जाती है।
ऐसे में छवि ने भारतीय नारी की एक खूबसूरत छवि को गढ़ा है। जिसकी चमक से फिलहाल संयुक्त राष्ट्र में विराजे विदेशियों की आँखें चौंधिया गई है। लेकिन सच तो यह है कि आँखें अब भारत की खुलनी चाहिए। भारतीय नारी की यह दबंग लेकिन गरिमामयी छवि ही सराहनीय है। नारी की सहमी और सकुचाई छवि को तोड़ने के लिए फिलहाल छवि राजावत का स्वागत है। इंतजार है हर गाँव से स्त्री शक्ति की एक नई छवि के उभरने का।
doesn. t matter she is a gujjar or not. its all about a real face of right social work, its all about right way of develpment of our rajasthan's villagea.
we are also needs a learn from these social workers, she is deserve for her great social work .

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