22 मार्च अंतरराष्ट्रीय गुर्जर दिवस


22 March अंतर्राष्ट्रीय गुर्जर दिवस
सम्राट कनिष्क महान हमारे सभी पूर्वजो में सिरमौर हैं।
लगभग दो हजार साल बीतने पर भी गुर्जर समाज में वो एक देवपुत्र की तरह पूजे जाते हैं।। गुर्जरो के खेतो में देवता बने होते हैं, वे देवता कनिष्क महान की पूजन परम्परा को ही संजोये हुए हैं। हर तीज त्योहार पर गुर्जरियां उन देवताओ पर घी का दीया जलाती हैं व पकवान चढाती हैं। कनिष्क महान को देवपुत्र कहा जाता था।। सभी कसाणा सम्राटो को देवपुत्र ही कहा गया है। सम्राट कनिष्क महान के पंचतत्व में विलीन होने के सैकडो सालो बाद भी कल्हण ,हवेनसांग व अन्य बहुत से लेखक उनका यशोगान करते हैं।
सम्राट विमतक्तु कुषाण के पुत्र कनिष्क अपने राज्यरोहण से पहले शको के खिलाफ युद्ध लडते हैं व शको को कुषाणो का अधिपत्य स्वीकाराने पर विवश कर देते हैं। इस युद्ध में कनिष्क महान शूरवीर सेनापति शालिवाहन के साथ युद्ध भूमि में जाते हैं व शकसत्ता को उखाड फेंकते हैं।
इस विजय व राज्यरोहण के उपलक्ष्य में कनिष्क महान एक नया संवत चलाते हैं जिसे शक संवत यानी शालिवाहन शक संवत  कहा जाता है। शालिवाहन आधुनिक भाटी वंश के पूर्वज हैं जिनके पिता रिसालू या रिसाल ने रिसालकोट बसाया जिसे स्यालकोट कहा जाता है अब।।
कुषाण साम्राज्य के राजसिंहासन पर बैठते ही कनिष्क महान मगध पर आक्रमण करके मगध को अपने अधीन करते हैं। इस प्रकार अपने आरंभिक सालो में वे अपने साम्राज्य विस्तार में लग जाते हैं तथा पूरे भारतवर्ष पर अपना अधिपत्य जमा लेते हैं।
भारत,अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बलूचिस्तान, कश्मीर, तारिम बेसिन,ताशकंद,खोटान,चीन का एक बडा हिस्सा,ईरान का सीमावर्ती हिस्सा, पूरा हिमालय, बंगाल की खाडी, दक्षिणी भारत ये सब कनिष्क महान के साम्राज्य का भाग थे जहाँ केवल मिहिर देवता के सिक्के व दूसरी ओर देवपुत्र शाहनुशाही कनिष्क महान का चित्र ही प्रचलित थे।
अपने पूर्ववर्ती मौर्य साम्राज्य से भी बहुत बडा साम्राज्य कुषाणो ने खडा किया। स्थापत्य, कला,संस्कृति, शिक्षण, कृषि,युद्धकला, भवन व मन्दिर निर्माण, व्यापार,न्याय, सुशाषन,समृद्धि,संपन्नता,सर्वधर्म व सार्वभौमिक संस्कृति ये सब अपने पूरे प्रभाव के साथ कनिष्क महान के शासन में जगह पाते थे।
ये समय भारतीय उपमहाद्वीप का स्वर्ण काल था जहाँ चहुँओर समृद्धि व सुशासन था। हर दृष्टि से यह स्वर्ण युग था युद्ध से लेकर बुद्ध तक।।
कनिष्क महान को विश्व में एक महानतम शासक के रूप में स्मरण किया जाता है। उन्हें सार्वभौमिक संस्कृति का जनक व पालत माना गया है जिनके शासन में पूरे उपमहाद्वीप में कई संस्कृतियाँ फली व फूली।
केवल कनिष्क महान ही नहीं बल्कि आने वाले कुषाण सम्राटो हुविष्क, वशिष्क व वसुदेव कुषाण ने  भी कुषाण साम्राज्य को कनिष्क की तरह ही शासित किया। हुविष्क व वशिष्क की गणना भी महान सम्राटो में की जाती है।
यदि कनिष्क महान के समय भवन व मंदिर निर्माण कला की बात की जाये तो उस समय गांधार स्थापत्य कला व मथुरा स्थापत्य कला जन्मी । दोनो ही शैलियो में शानदार व भव्य निर्माण हुए। अफगानिस्तान व भारत में आज भी बहुत से किले व मठ इसी शैली में निर्मित्त हैं। गांधार भवन शैली में महात्मा बुद्ध की बहुत सुन्दर प्रतिमा व स्तूप बनाये गये। बामियान के बुद्ध जिसे तालिबानियो ने नष्ट कर दिया, उसी की देन है।
मथुरा में कई प्रतिमा मिली हैं जो कुषाणकालीन हैं।
कनिष्क महान से पहले के शासक शैवधर्म के उपासक थे व मिहिरदेव यानी सूर्यदेव के भक्त थे। मिहिर तोखारी भाषा का शब्द है जिसकी उपासना गुर्जर अविस्मरणीय काल से करते आ रहे हैं। तोखारी का आधुनिक रूप गुर्जरी( गूजरी,गोजरी) भाषा है जिसे बहुत से भागो में गुर्जरो द्वारा आज भी बोला जाता है।
सम्राट कनिष्क ने बौद्ध धर्म को अपना लिया गया , उनके समय में बौद्ध धर्म ने अभूतपुर्व उन्नति की , बौद्ध धर्म उपमहाद्वीप से बाहर निकलकर सुदूर देशो में पहुँचा व लोगो ने इस भारतीय धर्म से प्रभावित होकर इसे अपना लिया। बौद्ध धर्म को प्रश्रय देकर कनिष्क ने उसे एशिया महाद्वीप के कोनो कोनो में पहुँचाया।
सम्राट कनिष्क  ने कश्मीर के कुण्डलवन नामक जगह पर चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन किया जिसमें देश विदेश से बौद्ध विद्वानो ने भाग लिया।  यह अन्तिम बौद्ध संगीति थी। इसमें बौद्ध धर्म के ग्रन्थो को इकटठा किया गया व उन्हें अनुवादित किया गया।
सम्राट कनिष्क महान के दरबार में शल्यचिकित्सा के जनक चरक , बुद्धचरित के लेखक अश्वघोष व वसुगुप्त जैसे विश्वप्रसिद्ध  विद्वान स्थान पाते थे।
चक्रवर्ती सम्राट कनिष्क महान ने ही पाली भाषा व बैक्ट्रियन भाषा( कुषाणो की अपनी भाषा)  के स्थान पर संस्कृत को बढावा दिया ,उन्होने पाली भाषा में लिखे गये बौद्ध ग्रन्थो का अनुवाद संस्कृत में कराया व उसे राजकीय भाषा का दर्जा दिया। इस बदलाव से संस्कृत सबसे  सशक्त भाषा बनकर उभरी।

विश्व के सबसे बडे व्यापारिक मार्ग पर सिल्क मार्ग ( सिल्क रूट) पर कुषाण साम्राज्य का तीन सौ सालो तक अधिपत्य बना रहा। सिल्क रूट को विश्व का सबसे बडा व्यापारिक मार्ग माना जाता है, इस रूट पर यूरोप,मध्यएशिया, दक्षिणी एशिया, चीन व भारत के बीच व्यापार होता था। यह विश्व में सदा एक रोमांचक व्यापारिक मार्ग माना जाता है। कनिष्क महान ने इसके जरिये ही विश्व के दो दर्जन से अधिक देशो के साथ व्यापार किया। यह भारत के इतिहास में अभूतपुर्व उन्नति का काल था।

कनिष्क महान ने पूरे उपमहाद्वीप पर आधी सदी तक निर्विवाद रूप से शासन किया, शासन ऐसा जिसकी मिशाल मिलनी दुर्लभ है। हर तरह से परिपूर्ण, हर तरह का सुख,हर तरह की सुरक्षा।
ठीक उसी समय चीन ने अपने साम्राज्यवादी कदम हिमालय की ओर बढाने शुरू किये। सम्राट कनिष्क महान ने चीन सम्राट के पास वैवाहिक प्रस्ताव भेजा कि वे अपनी पुत्री का विवाह कनिष्क महान के साथ कर दें ताकि दोनो देशो में मधुर राजनीतिक सम्बन्ध स्थापित हो सके मगर चीन सम्राट ने कुषाण सेनापति सहित भारतीय सैनिको को बन्दी बना लिया ।।
इस बात से कनिष्क क्रोधित हो उठे वो चीन को कुचलने को आतुर हो गये। मगर उस समय हिमालय में बहुत भारी हिमपात हो रहा था जिससे युद्ध अभियान कुछ महीनो के लिये टालना पडा।
कुछ महीनो के बाद कनिष्क महान कुछ हजार गुर्जर सैनिको के साथ हिमालय की ओर अपने घोडे लेकर निकल गये। सेना का संचालन वे स्वयं कर रहे थे। हिमालय पर अपने अश्वो के पदचाप छोडते हुए वे चीन की सीमा में पहुँचे जहाँ कभी कनिष्क के पूर्वज कबीले यूची( गुर्जर ) शासन कर चुके थे व चीन को कई बार नतमस्तक कर चुके थे। चीनी सेना व कुषाणो की सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसमें कनिष्क महान के सामने चीन ने पराजय स्वीकारा करली। चीन के सम्राट को भारतीय सम्राट का अधिपत्य स्वीकारना पडा।
भारतीय इतिहास के एकमात्र सम्राट थे कनिष्क जो चीन को हरा पाये व हिमालय के उस ओर जाकर युद्ध जीत सके। कोई भी भारतीय शासक ऐसा नहीं करपाया था ना ही फिर कभी करपाया। हाँ उनके पोत्र हुविष्क ने जरूर चीन को फिर से हराया।
इस प्रकार चीन भी भारतीय सम्राट के अधीन रहा। पर्सियन साम्राज्य ने भी गुर्जर सम्राट कनिष्क महान से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखे व तुर्की कबीलो ने कभी भारतीय सीमाओ पर आने का साहस तक न जुटाया।
सम्राट कनिष्क महान निर्विवाद रूप से भारत के सबसे महानतम सम्राट हैं व विश्व में जब जब महानतम शासको की सूची बनेगी उसमें एशिया के इस महानतम शासक को निसन्देह स्थान दिया जाता रहेगा। ।                        लेकिन दूसरी और देखें तो भारतवर्ष के अंदर ही इस महान सम्राट को इतिहास में छोटी जगह  देकर उनकी महानता को खत्म करने का काम भारत के जातिवादी इतिहासकारों ने किया है जब की एशिया के कई देशों में उनके नाम से प्रमुख संस्थानों के नाम है गुर्जर समाज को विदेशी सिद्ध करने के लिए भारत वर्ष के इन जातिवादी इतिहासकारों ने इन महान गुर्जर सम्राटों को भारत के गौरवशाली इतिहास में वर्णन न करके अपनी ओछी मानसिकता का परिचय दिया है । धन्य है हमारे पूर्वज जिन्होंने अपने शासन काल में पुरातत्व महत्त्व की अनेक इमारतों का निर्माण कराया था जो खुदाई से इन महान सम्राटो का इतिहास धरती माता उगल रही है अन्यथा इन जातिवादी इतिहासकारों ने अपनी जातियों के महिमा मंडन करके दुसरो के इतिहास को छल पूर्वक बुरी तरह कुचलने का षड्यंत्र किया है      अगर कोई इतिहासकार बिन्दुबार तार्किक बहस करना चाहे तो मेरे मोबा. 9828040794,8005907241 पर मुझसे खुली तार्किक बहस कर सकता है।
यह सोचकर कि कनिष्क महान हमारे पूर्वज थे, छाती गर्व से फूल जाती है,रोंये खडे हो जाते हैं।
पीढी दर पीढी गुर्जरो में कनिष्क महान व मिहिरभोज महान व मिहिरकुल हूण की समृति में पर्व मनाये जाते रहेंगे।
इस धरा पर कौन भला ऐसे महान पूर्वजो को पाकर फूला नहीं समायेगा।।
जय कनिष्क महान, जय मिहिरभोज महान ।
जय नागभट, जय मिहिरकुल हूण ।।                        
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हेमराज गुर्जर जैतगढ़ आसीन्द
📲 9828040794, 8005907241
(प्रदेश मीडिया प्रभारी-अखिल भारतीय युवा गुर्जर महासभा राजस्थान)
(जिला मीडिया प्रभारी-पथिक सेना संगठन भीलवाड़ा)
(युवा गुर्जर समाज सेवक आसींद भीलवाड़ा राजस्थान)

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