भारतीय राष्ट्रिय संवत-शक संवत

भारतीय राष्ट्रीय संवत- शक संवत

डा. सुशील भाटी

शक संवत भारत का राष्ट्रीय संवत हैं| इस संवत को कुषाण/कसाना सम्राट कनिष्क महान ने अपने राज्य रोहण के उपलक्ष्य में 78 इस्वी में चलाया था| इस संवत कि पहली तिथि चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा होती हैं जोकि भारत के विश्व विख्यात सम्राट कनिष्क महान के राज्य रोहण की वर्ष गाठ हैं| शक संवत में कुछ ऐसी विशेषताए हैं जो भारत में प्रचलित किसी भी अन्य संवत में नहीं हैं जिनके कारण भारत सरकार ने इसे “राष्ट्रीय संवत” का दर्ज़ा प्रदान किया हैं|

भारत भाषाई और सांस्कृतिक बहुलता वाला विशाल देश हैं, जिस कारण आज़ादी के समय यहाँ अलग-अलग प्रान्तों में विभिन्न संवत चल रहे थे| भारत सरकार के सामने यह समस्या थी कि किस संवत को भारत का अधिकारिक संवत का दर्जा दिया जाए| वस्तुत भारत सरकार ने सन 1954 में संवत सुधार समिति (Calendar Reform Committee) का गठन किया जिसने देश प्रचलित 55 संवतो की पहचान की| कई बैठकों में हुई बहुत विस्तृत चर्चा के बाद संवत सुधार समिति ने स्वदेशी संवतो में से शक संवत को अधिकारिक राष्ट्रीय संवत का दर्जा प्रदान करने कि अनुशंषा की, क्योकि प्राचीन काल में यह संवत भारत में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता था| शक संवत भारतीय संवतो में सबसे ज्यादा वैज्ञानिक, सही तथा त्रुटिहीन हैं, शक संवत प्रत्येक साल 22 मार्च को शुरू होता हैं, इस दिन सूर्य विश्वत रेखा पर होता हैं तथा दिन और रात बराबर होते हैं| शक संवत में साल 365 दिन होते हैं और इसका ‘लीप इयर’ ‘ग्रेगोरियन कैलेंडर’ के साथ-साथ ही पड़ता हैं| ‘लीप इयर’ में यह 23 मार्च को शुरू होता हैं और इसमें‘ग्रेगोरियन कैलेंडर’ की तरह 366 दिन होते हैं|

पश्चिमी ‘ग्रेगोरियन कैलेंडर’ के साथ-साथ, शक संवत भारत सरकार द्वारा कार्यलीय उपयोग लाया जाना वाला अधिकारिक संवत हैं| शक संवत का प्रयोग भारत के ‘गज़ट’ प्रकाशन और ‘आल इंडिया रेडियो’ के समाचार प्रसारण में किया जाता हैं| भारत सरकार द्वारा ज़ारी कैलेंडर, सूचनाओ और संचार हेतु भी शक संवत का ही प्रयोग किया जाता हैं|

जहाँ तक शक संवत के ऐतिहासिक महत्त्व कि बात हैं, इसे भारत के विश्व विख्यात सम्राट कनिष्क महान ने अपने राज्य रोहण के उपलक्ष्य में चलाया था| अतः शक नव संवत्सर अर्थात ग्रेगोरियन कैलेंडर की 22 मार्च कनिष्क के राज्य रोहण की वर्ष गाँठ भी हैं|

कुषाणों की पहचान आधुनिक गुर्जरों से की गई हैं| अतः इस दिन को गुर्जर समाज विश्व भर में इंटरनेशनल गुर्जर डे के रूप में भी मनाता हैं|

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