गुर्जर कुषाण कालीन 'गुशुर' शब्द का परवर्तित रूप हें

गुर्जर कुषाण कालीन ‘गुशुर’ शब्द का परवर्तित रूप हैं|

डॉ सुशील भाटी

गुशुर>गुजुर>गुज्जर>गुर्ज्जर>गुर्जर

कुछ इतिहासकार के अनुसार गुर्जर शब्द की उत्पत्ति ‘गुशुर’ शब्द से हुई हैं| गुसुर ईरानी शब्द हैं| एच. डब्लू. बेली के अनुसार गुशुर’ शब्द का अर्थ ऊँचे परिवार में उत्पन्न व्यक्ति यानि कुलपुत्र हैं|  ‘गुशुर’ शब्द का आशय राजपरिवार अथवा राजसी परिवार के सदस्य से हैं| बी. एन. मुख़र्जी के अनुसार कुषाण साम्राज्य के राजसी वर्ग के एक हिस्से को ‘गुशुर’ कहते थे| उनके अनुसार ‘गुशुर’ सभवतः सेना के अधिकारि होते थे| कुषाण सम्राट कुजुल कड़फिसिस के समकालीन उसके अधीन शासक सेनवर्मन का स्वात से एक अभिलेख प्राप्त हुआ हैं, जिसमे‘गुशुर’शब्द सेना के अधिकारीयों के लिया प्रयुक्त हुआ हैं|

सबसे पहले पी. सी. बागची  ने गुर्जरों की ‘गुशुर’ उत्पात्ति के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था| प्रसिद्ध इतिहासकार आर. एस. शर्मा ने गुर्जरों की ‘गुशुर’ उत्पात्ति मत का  समर्थन किया हैं|

उत्तरी अफगानिस्तान स्थित एक स्तूप से प्राप्त अभिलेख में विहार स्वामी की उपाधि के रूप में ‘गुशुर’ का उल्लेख किया गया हैं| जैसा कि ऊपर कहा जा चुका हैं कि कुषाण सम्राट कुजुल कड़फिसिस के अधीन शासक सेनवर्मन के स्वात अभिलेख में भी ‘गुशुर’ शब्द प्रयुक्त हुआ हैं|

पश्चिमिओत्तर पाकिस्तान के हजारा क्षेत्र स्थित अब्बोटाबाद से प्राप्त कुषाण कालीन अभिलेख में शाफर नामक व्यक्ति का उल्लेख हैं, जोकि मक का पुत्र तथा ‘गशूर’ नामक वर्ग का सदस्य हैं| इस अभिलेख के काल निश्चित नहीं किया जा सका हैं किन्तु इसकी भाषा और लिपि कुषाण काल की हैं| अभिलेख में इसका काल अज्ञात संवत के पच्चीसवे वर्ष का हैं|  अफगानिस्तान स्थित रबाटक नामक स्थान से प्राप्त  कनिष्क के अभिलेख में भी शाफर नामक एक कुषाण अधिकारी के नाम का उल्लेख हैं| अब्बोटाबाद अभिलेख का गशूर शाफ़र और कनिष्क के रबाटक अभिलेख में उल्लेखित शाफर एक ही व्यक्ति हो सकते हैं| इस पहचान को स्थापित करने के लिए और अधिक शोध की आवश्कता हैं|

कुषाणों के साँची अभिलेख में भी गौशुर सिम्ह् बल नामक व्यक्ति का उल्लेख आया हैं|

अतः उपरोक्त साक्ष्यों से स्पष्ट हैं कि कुषाणों के राजसी परिवार के सदस्यों, सामंतो एवं उच्च सैनिक अधिकारियो के वर्ग को ‘गुशुर’ कहते थे, जिसका ‘गशूर’, ‘गौशुर’ के रूप में भी कुषाणों के अभिलेखों में उल्लेख हुआ हैं| कुषाणों के राजसी परिवार के सदस्य और उच्च सैनिक अधिकारी ‘गुशुर’ को उपाधि के तरह धारण करते थे| वस्तुतः ‘गुशुर’ एक कुषाणों का राजसी वर्ग जिसके सदस्य राजा और सैनिक अधिकारी बनते थे|

एफ. डब्ल्यू थोमस के अनुसार कुषाण वंश के संस्थापक कुजुल कड़फिसिस के नाम में कुजुल वास्तव में ‘गुशुर’ हैं| बी. एन. मुखर्जी ने इस बात का समर्थन किया हैं कि कुजुल को ‘गुशुर’ पढ़ा जान चाहिए| बी. एन. मुखर्जी ने इस तरफ ध्यान आकर्षित किया हैं कि कुषाणों की बाख्त्री भाषा में श/स को ज बोला लिखा जाता था| जैसे- कुषाण सम्राट वासुदेव को बाजोदेओ लिखा गया हैं| इसी प्रकार कनिष्क के रबाटक अभिलेख में साकेत को जागेदो लिखा गया हैं| अतः कुषाणों की अपनी बाख्त्री भाषा में ‘गुशुर’ को ‘गुजुर’ बोला जाता था तथा कुषाण वंश का संस्थापक कड़फिसिस I ‘गुजुर’ उपाधि धारण करता था| ‘गुजुर’ को ही पश्चिमिओत्तर भारतीय लिपि में कुजुल लिखा गया हैं, क्योकि पश्चिमिओत्तर की भारतीय लिपि में ईरानी शब्दों के लिखते समय ग को क तथा र को ल कहा जाता था| अतः कुषाण सम्राट खुद को अपनी बाख्त्री में भाषा ‘गुजुर’ कहते थे| इस बात से बढ़कर गुर्जरो की कुषाण उत्पत्ति का क्या प्रमाण हो सकता हैं कि बाख्त्री के मूल क्षेत्र उत्तरी अफगानिस्तान (बैक्ट्रिया) में गुर्जर आज भी अपने को ‘गुजुर’ कहते हैं|  ‘गुशुर’ के उपरोक्त वर्णित एक अन्य रूप ‘गोशुर को बाख्त्री में‘गोजुर’ बोला जाता था| कश्मीर में गुर्जर खुद को गोजर अथवा गुज्जर कहते हैं तथा उनकी भाषा भी गोजरी कहलाती हैं|

यह शीशे की तरह साफ़ हैं कि गुर्जर शब्द की उत्पत्ति ईरानी शब्द ‘गुशुर’ से हुई हैं, जिसका अर्थ हैं राजपरिवार अथवा राजसी परिवार का सदस्य| जब कुषाण उत्तरी अफगानिस्तान (बैक्ट्रिया) में बसे और उन्होंने ‘गुशुर’ उपाधि को वहाँ की बाख्त्री भाषा में ‘गुजुर’ के रूप में अपनाया, जैसा उनके वंशज आज भी वहाँ अपने को कहते हैं| पंजाब में बसने पर, वहाँ की भाषा के प्रभाव में गुजुर से गुज्जर कहलाये तथा गंगा-जमना के इलाके में गूजर| प्राचीन जैन प्राकृत साहित्य में गुज्जर तथा गूज्जर शब्द का प्रयोग हुआ हैं| उसी काल में संस्कृत भाषा में गुर्ज्जर तथा गूर्ज्जर शब्द का प्रयोग हुआ हैं| सातवी शताब्द्दी में भडोच के ताम्रपत्रों में दद्दा को गूर्ज्जर वंश का राजा लिखा हैं| कालांतर में गुर्ज्जर से परिष्कृत होकर गुर्जर शब्द बना|

उपरोक्तवर्णन से गुर्जरों के कुषाण उत्पत्ति स्वतः प्रमाणित हैं|

सन्दर्भ
1. दिनेश चन्द्र सरकार, स्टडीज इन दी रिलीजियस लाइफ ऑफ़ ऐनशियेंट एंड मिडिवल इंडिया, प 108
2. टी. बरो, लैंग्वेज ऑफ़ दी खरोष्ठी डाक्यूमेंट्स फ्रॉम चाइनीज़ तुर्केस्तान, प 87
3. टी. बरो, ए ट्रांसलेशन ऑफ़ दी खरोष्ठी डाक्यूमेंट्स फ्रॉम चाइनीज़ तुर्केस्तान, प 141
4. ए. कनिंघम आरकेलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, 1864
5.  के. सी.ओझा, दी हिस्ट्री आफ फारेन रूल इन ऐन्शिऐन्ट इण्डिया, इलाहाबाद, 1968
6.  डी. आर. भण्डारकर, फारेन एलीमेण्ट इन इण्डियन पापुलेशन (लेख), इण्डियन ऐन्टिक्वैरी खण्डX L 1911
7. ए. एम. टी. जैक्सन, भिनमाल (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड 1 भाग 1, बोम्बे, 1896
8.  विन्सेंट ए. स्मिथ, दी ऑक्सफोर्ड हिस्टरी ऑफ इंडिया, चोथा संस्करण, दिल्ली,
9. जे.एम. कैम्पबैल, दी गूजर (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड IX भाग 2, बोम्बे, 1899
10. बी. एन. पुरी. हिस्ट्री ऑफ गुर्जर-प्रतिहार, नई दिल्ली, 1986
11.  सुशील भाटी, गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिधांत, जनइतिहास ब्लॉग, 2016

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

देव धाम देवमाली की कहानी

गुर्जर जाति के गौरव 24 बगड़ावत भाई

गुर्जर प्रतीक चिन्ह सम्राट कनिष्क का शाही निशान