बदकिस्मती हम गुर्जरोँ की हम एक किरोड़ी न बना सके।
#बदकिस्मती_गुर्जरों_कि_हम_एक_डॉ_किरोड़ी_न_बना_सके।
मीणा जाति का सबसे बड़ा हित "ST कोटा" सुरक्षित करने के बाद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा जी राष्ट्रीय राजनीति में नेतृत्व करने के लिए वापस अपने घर को लौट चुके हैं। आप मे से कुछ लोग उन्हें कौम का गद्दार कह सकते हैं, पर वास्तव में वे मीणा समाज के सच्चे हितेषी हैं, जिन्होंने जमें हुए राजनीतिक पद और पार्टी का परित्याग करके समाज को अपने हक़ के लिए खड़ा कर दिया और आज जब सबकुछ शांत है, उनकी कौम का हक़ सुरक्षित है तो न सिर्फ वे वापस अपने नीड़ को लौट चले, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में मीणा समाज के सितारा बनकर रहेंगे। इसे ही असली राजनीति कहते हैं कि जातिधर्म भी बखूबी निभा लिया और अब उसके साथ स्वविचारधारा के अनुसार भी जिएंगे। राजस्थान के गुर्जर राजनेताओं की इतनी बड़ी तो सोच ही नही है कि राजस्थान के विधायक से बाहर सोचने की हैसियत बना सकें औए हाँ, जिनकी है, उनकी नज़र में कौम की इतनी ज्यादा इज्जत नही है।
नीचे के अखबार के अनुसार अब गुर्जर समाज के 8 विधायकों में से किसी ऐसे को ढूंढा जावेगा जो सारे गुर्जर समाज को बावळा कर सकें, गुंजल उस लायक है पर येनकेन प्रकरण बात नही बन सकेगी और बाकी 7 की समाज के साथ पार्टी में भी इतनी नही है कि वे इस पार्टीगत जिम्मेदारी को निभा सकें।
होगी भी कैसे, किसी भी मंझे हुए लोकल (न कि राष्ट्रीय) राजनेता की छवि इसी बात से डिसाइड होती है कि उसके समाज मे उसकी कितनी इज्जत है और तुम डॉ. किरोड़ीलाल मीणा जैसी राजनीति समाज के लिए कर सको इतना तुम्हारा जमीर नही है, औकात की बात ही न करें।
बाकी देखो क्या होता है, डॉ. किरोड़ीलाल मीणा जैसे दिग्गजों के अलावा ज्यादातर स्थानीय राजनेताओं की कोई जात नही होती, और अपने आठों भाजपाईयों के साथ कांग्रेसी विधायक भी उसी "सामाजिक कम, राजनीतिक ज्यादा" जमात में खड़े हैं।
अब फिलहाल हरियाणवी गाना सुनेंगे, "नाश होगा रे, नाश होगा।"
मीणा जाति का सबसे बड़ा हित "ST कोटा" सुरक्षित करने के बाद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा जी राष्ट्रीय राजनीति में नेतृत्व करने के लिए वापस अपने घर को लौट चुके हैं। आप मे से कुछ लोग उन्हें कौम का गद्दार कह सकते हैं, पर वास्तव में वे मीणा समाज के सच्चे हितेषी हैं, जिन्होंने जमें हुए राजनीतिक पद और पार्टी का परित्याग करके समाज को अपने हक़ के लिए खड़ा कर दिया और आज जब सबकुछ शांत है, उनकी कौम का हक़ सुरक्षित है तो न सिर्फ वे वापस अपने नीड़ को लौट चले, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में मीणा समाज के सितारा बनकर रहेंगे। इसे ही असली राजनीति कहते हैं कि जातिधर्म भी बखूबी निभा लिया और अब उसके साथ स्वविचारधारा के अनुसार भी जिएंगे। राजस्थान के गुर्जर राजनेताओं की इतनी बड़ी तो सोच ही नही है कि राजस्थान के विधायक से बाहर सोचने की हैसियत बना सकें औए हाँ, जिनकी है, उनकी नज़र में कौम की इतनी ज्यादा इज्जत नही है।
नीचे के अखबार के अनुसार अब गुर्जर समाज के 8 विधायकों में से किसी ऐसे को ढूंढा जावेगा जो सारे गुर्जर समाज को बावळा कर सकें, गुंजल उस लायक है पर येनकेन प्रकरण बात नही बन सकेगी और बाकी 7 की समाज के साथ पार्टी में भी इतनी नही है कि वे इस पार्टीगत जिम्मेदारी को निभा सकें।
होगी भी कैसे, किसी भी मंझे हुए लोकल (न कि राष्ट्रीय) राजनेता की छवि इसी बात से डिसाइड होती है कि उसके समाज मे उसकी कितनी इज्जत है और तुम डॉ. किरोड़ीलाल मीणा जैसी राजनीति समाज के लिए कर सको इतना तुम्हारा जमीर नही है, औकात की बात ही न करें।
बाकी देखो क्या होता है, डॉ. किरोड़ीलाल मीणा जैसे दिग्गजों के अलावा ज्यादातर स्थानीय राजनेताओं की कोई जात नही होती, और अपने आठों भाजपाईयों के साथ कांग्रेसी विधायक भी उसी "सामाजिक कम, राजनीतिक ज्यादा" जमात में खड़े हैं।
अब फिलहाल हरियाणवी गाना सुनेंगे, "नाश होगा रे, नाश होगा।"
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