कुछ जयचन्दो ने शब्द उधार ले रखा अकल गिरवी रख रखी

सवाल में कुछ तर्क होता तो इनको जवाब दिया भी जाता |  बिना सर-पैर के सवालों को इग्नोर करना ही समझदारी है |

लेकिन सोचा की समाज की तरफ हमारी जिम्मेवारी जरूर बनती है इसलिए जिस तस्वीर को ये विदेशी बता रहे है, जिसको पैरों के नीचे कुचल रहे है, उस पर कुछ पुराने चित्र अपने समाज के सामने रख रहा हूँ |

आप खुद अंदाज़ा लगा पाएंगे कि ये किसी विदेशी की तस्वीर है या खुद बनायीं गयी है | गुर्जर परिवार का उद्देश्य था कि हमारे प्रतापी सम्राट मिहिरभोज की कोई आकर्षित से तस्वीर होनी चाहिए जिसमे उनकी युवा अवस्था की छवि दिखाई दे | इस तस्वीर में मिहिरभोज सुडौल, सुन्दर और प्रतापी क्या दिखे, इसे महासभा वाले विदेशी बताने लगे | मतलब हमारे सम्राट हल्के-फुल्के होंगे तभी भारतीय लगेंगे | इसलिए इनके सवाल मुझे तर्कहीन लगे थे |

दरअसल तस्वीर इनकी समस्या नहीं है | कुछ उच्च जाति के इतिहासकारों ने एक शब्द उधार दे रखा है इन्हे | वो शब्द है  'विदेशी' , उसे जहाँ मौका मिले उसे चिपकना चाहते है ये लोग ताकि उन जातियों का एजेंडा समाज में परोसा जा सकें |

उनका एजेंडा है की जितना ज्यादा इस शब्द को हम चिपकाएंगे उतना गुर्जर अपने इतिहास से दूर हटेगा, और जितना गुर्जर समाज इतिहास से दूर रहेगा उतना ही आसान हो जायेगा हमारे इतिहास को दबाना |

इन कुछ जयचंदो ने ये शब्द उधार ले रखा है, और अक्ल गिरवी रख दी है |

जय कनिष्क

जय मिहिरकुल हूण

जय मिहिर भोज

जय देवनारायण

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

देव धाम देवमाली की कहानी

गुर्जर जाति के गौरव 24 बगड़ावत भाई

गुर्जर प्रतीक चिन्ह सम्राट कनिष्क का शाही निशान